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18 Mar 2020 · 1 min read

ये ही रामराज तो नहीं

राहत मिलेगी सबको मगर आज तो नहीं
जनता को लूटने का ये अंदाज तो नहीं

कैसी ये सिसकियाँ हैं ये कैसा है शोरगुल
चिड़ियों के सर पे बैठा कोई बाज तो नहीं

घुट-घुट के ही रह जाती है सीने में बारहाँ
सहमे हुए लोगों की ये आवाज तो नहीं

पिंजरे के परिंदों ने ये सैय्याद से कहा
पर ही कटे हैं पर कटी परवाज तो नहीं

बीयर पिला रही है सियासत भी शान से
दौलत की वंदना में कहीं ताज तो नहीं

हत्या, डकैती, चोरी, बलत्कार, रहजनी
कलयुग में कहीं ये ही रामराज तो नहीं

उल्लू ही उल्लू बैठे हैं हर ओर शाख पर
‘संजय’ सुनहरे कल का ये आगाज तो नहीं

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