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18 Mar 2020 · 1 min read

जीन्स वीन्स भी पहनो

लड़के छुट्टे पर लड़की पर पहरा लगता है
आधी खिड़की पर ही क्यों ये परदा लगता है

लाख जुबाँ हो मीठी लेकिन सच की है तासीर यही
तुम कह दो या हम कह दें ये कड़वा लगता है

बिन बोले ही हो जाते अल्फाज नुमाया चेहरे पर
चुप रहना भी कह देने का लहजा लगता है

रीति-रिवाजों के टुकड़ों को फेंको तो कुछ हलचल हो
दुनियावी तालाब का पानी ठहरा ठहरा लगता है

क्या मजबूरी है जो हरदम साड़ी में ही दिखते हो
जीन्स वीन्स भी पहनो तुम पर अच्छा लगता है

पीठ के पीछे पागल तुमको कहते हैं दुनिया वाले
क्या संजय से कोई तुम्हारा रिश्ता लगता है

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