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16 Mar 2020 · 1 min read

बेटियाँ हैं मोमबत्तियाँ

बेटियाँ हैं मोमबत्तियाँ
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बाबुल तेरे आँगन की,बेटियाँ हैं मोमबत्तियाँ
जगती-बुझती रहती हैं,जैसे हों फुलझड़ियाँ

लाड प्यार में पलती हैं,स्वभाव की भावुक हैं
काँटों की चुभन ना सहें ,फूलों सी नाजुक हैं
क्यों दुत्कारी जाती हैं, जन्म की वो घड़ियाँ
जगती – बुझती रहती हैं,जैसे हों फुलझड़ियाँ

कुदरत की श्रेष्ठ रचना,घुट – घुट कर जीतीं हैं
समाज में उपेक्षा होती,सदा दवाब में जीतीं हैं
कब मिलेगा मान सम्मान, टूटेगी कुल बेड़ियाँ
जगती – बुझती रहती हैं,जैसे हों फुलझड़ियाँ

मायके में पराई होती ,ससुराल कहे ना अपना
कुटम्ब-कुटीर पालन में,अधूरा रहता हैं सपना
सर्वत्र सम्मानित होंगीं,वो खुशियों भरी घड़ियाँ
जगती – बुझती रहती हैं ,जैसे हों फुलझड़ियाँ

दरिंदों का शिकार होती,कहीं पर सुरक्षित नहीं
सहमी सहमी सी रहती,कहीं पर आरक्षित नहीं
खतरों से परे वो होंगीं,फूलों की सुंदर क्यारियाँ
जगती – बुझती रहती हैं, जैसे हों फुलझड़ियाँ

भाई के पहरे में जीती, कभी पिता के साये में
पति के रौब तले जीती,कभी बेटों के कहने में
सुखविन्द्र जीएगी जिन्दगी,करेगी मनमर्जियां
जगती – बुझती रहती हैं,जैसे हों फुलझड़ियाँ

बाबुल तेरे आँगन की, बेटियाँ हैं मोमबत्तियाँ
जगती -बुझती रहती हैं, जैसै हों फुलझड़ियाँ

सुखविंद्र सिर्फ मनसीरत

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