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14 Mar 2020 · 1 min read

प्रेम का प्रतिमान तू है।

गीतिका का व्याकरण, तू गीत का विज्ञान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर, प्रेम का प्रतिमान तू है।।

भावनाओं का समंदर नेह का भंडार तू है ।
तू समर्पण का शिखर है प्रीति का अभिसार तू है।
स्वप्न मेरे चक्षुओं का धड़कनों की ताल लय तू।
सौम्यता तू चाँदनी की रूप का श्रंगार तू है।

आशिकों की आशिकी तू इश्क का उन्वान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर, प्रेम का प्रतिमान तू है।।

कवि की करुणा से जो उपजा था कभी वह छंद है तू।
मात्र क्षण भर का नहीं है शाश्वत आनंद है तू।
तितलियों को लग रही तू पंखुड़ी फूलों की नाजुक।
किंतु भौंरें जानते हैं फागुनी मकरंद है तू।

तू गुलाबों की महक है काम का दिनमान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर प्रेम का प्रतिमान तू है।।

सभ्यता तुझसे यशस्वी दिव्यता का मान तुझसे।
तू हया का रंग पावन सादगी की शान तुझसे।
सृष्टि की संकल्पना तू संस्कृति युगश्रेष्ठ की है।
इस धरा से उस गगन तक कौन है अनजान तुझसे।

असलियत से आज भी अपनी मगर अनजान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर प्रेम का प्रतिमान तू है।।

प्रदीप कुमार

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