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22 Feb 2020 · 1 min read

गैरों की बाहों में.....

राजतिलक के अवसर पर ही,
सपनों को वनवास मिला।
गैरों की बाहों में हमको,
अपनों का विश्वास मिला। ।

कितने रावण पीली चादर,
ओढ़ जगत में राम हुये।
धवल चाँँदनी रातों में भी,
कितने काले काम हुये।
गोरे तन के भीतर अक्सर,
काले मन का वास मिला।

फटी विबाई पैर में जिसके,
बस उसने ही पीर सही।
गांडीव की प्रत्यंचा भी,
चीरहरण पर मौन रही।
उजले पृष्ठों पर टंकित घृणित,
काला इतिहास मिला।।

लोकतंत्र ने परिभाषा से,
ऊपर उठकर काम किये ।
रेशम के कीड़ों ने खादी,
के धागे बदनाम किये ।
जिसनें भौंरों को रिश्वत दी,
उसको ही मधुमास मिला।।

शहर गांव तब्दील हुए सब,
मंडी में बाजारों में।
गुंडों को सम्मान मिला बस,
चोरों की सरकारों में।
झोपड़ियों को भूख गरीबी,
दर्द और संत्रास मिला ।।

प्रदीप कुमार

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