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16 Dec 2019 · 1 min read

नजरिये नजरअंदाज नहीं होते

वो शासक ही क्या ?
जिससे प्रजा नाराज न हो ?

उठे विरोध
और भी ज्यादा ?
जो लगे काम हुये !
और भी ज्यादा !

जो माँगे
रोटी दिखाकर
उससे भी छीन लें
अपने सगे चारों में बाँट दे !

किसे मालूम नाइंसाफी हुई !
इसी पर और अधिक जोर दें !
नजर नजरिये को
नजरअंदाज करती है !

हो जायेंगे लोग आदी !
आज नहीं तो कल !
फिर चाहे जो नाम दें !

नजर से नजरिए नहीं.
नजर से नजरअंदाज,
नजरिया तो चिंतन है
मंथन है मनन है .
सगे संबंधियों से परे है

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