खोई हुई संपदा @लघुकथा
एक हास्यव्यंग सबने सुना होगा,
हँसी किसी को नहीं आई,
एक आदमी का एक सिक्का रेत मे गिर गया,
अंधेरा था,
बड़ी मुश्किल हो गई,
वह छलनी लेकर आया,
स्थान चिंहित नहीं किया,
कुछ दूर रोशनी देखकर,
रातभर रेत छानने लगा,
सुबह हो गई,
सिक्का नहीं मिला,
सुबह पप्पू जो काफी समझदार था,
पप्पू ने पूछा,
सिक्का कहाँ गिरा था,
आदमी ने बताया,
सिक्का तो वहाँ गिरा था,
पप्पू ने उत्सुकता से पूछा यहाँ क्यों खोज़ रहे हो,
कहने लगा यहाँ उजाला था,
इसीलिये ….बात हँसने जैसी बिलकुल नहीं है.
सीखने जैसी है,
यही हाल मेरे देश में हो रहा है,
सम्पूर्ण, सम्पन्न, धर्मनिरपेक्ष, संप्रभुता, अखंडता
लेकिन सिक्के वहीं खोजने है
जहाँ पर उजाला है.