Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
1 Dec 2019 · 1 min read

मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -४)

मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -४)

४-मन रोकने का नाम सम भाषते सुधीर,
इंद्रियों को मारना दम कहैं बुद्ध वीर,
सर्प शत्रु मारया नहीं झूठी पीटता लकीर,
सत्य हैं गुरु के वाक्य श्रद्धा सच्चा विश्वास,
समाधान सावधान मन विक्षेप नाश,
सर्व सुनना चाहवै तो जा गुरु कुंदनलाल पास,
दास कहै नंदलाल सुनो, करो दीन जानकर रक्षा।

व्याख्या-कवि कहता है कि मन पर काबु पाने वाले को ही धैर्यवान कहा जाता है और जो अपनी इंद्रियों पर काबु पा लेता है उसी को जागृत कहा जाता है। ये मनुष्य के शर्प के समान दुश्मन है अगर इन पर काबु नहीं पाया तो यह धीरे धीरे मनुष्य को अधोगति की तरफ ले जाते हैं।
कवि आगे कहते हैं कि गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान ही परम सत्य है उसी में सच्चा विश्वास और श्रद्धा रख।
मन के इधर उधर भटकने से सर्व नाश हो जाता है,इसका समाधान केवल सावधानी ही है। अर्थात मन की चंचलता को वश में कर।
अगर इससे भी संतुष्टी नहीं मिली तो तुम्हें मेरे गुरु श्री कुन्दनलाल जी के पास जाना पड़ेगा।
अन्त में कवि श्री नंदलाल जी प्रभु के सामने याचना करते हैं कि हे सर्वशक्तिमान मुझे आपके चरणों का सेवक समझ कर मेरी रक्षा करो।

कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)

Loading...