विषय…. बाल कथा
“ईमानदारी का इनाम”
रोहन के सात वर्षीय बेटा अगम दूसरी कक्षा मैं अव्वल आया और रोहन
तनख्वाह मिली तो बेटे को कहा, “अगम, तुम बाज़ार चलो, तुम्हें नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने हैं|” बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया कि “पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी इस साल काम दे सकते हैं| पापा आप अपना नज़र का नया चश्मा बनवा लो,” अगम बोला|
रोहन ने सोचा बेटा मुझसे से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय मेरे चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है| खैर रोहन ने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा| दुकानदार ने बेटे के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली| डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी| फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा| रोहन बेटे से बोला, “बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों?” अगम बोला, “पिताजी मुझे शर्ट निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा…लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी …पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा|” रोहन खामोश रहा| घर आते वक़्त रोहन ने अगम से पूछा: तुम्हें ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा? अगम बोला: “पापा, मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पर पैसे खर्च कर दिया करते हो! गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिशवतखोर और जाने क्या-क्या कहते हैं जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं| जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है| पापा, मैं चाहता हूँ कि मुझे कभी जीवन में नए कपडे, नए जूते मिले या न मिले, लेकिन कोई आपको चोर,
बे-ईमान, रिशवतखोर या कुत्ता न कहें|” मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं!
अगम की बात सुनकर रोहन निरुतर था| आज पहली बार रोहन को ईमानदारी का इनाम मिला था|
स्वरचित –रेखा मोहन २१/१०/१९