Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Oct 2019 · 1 min read

सच के तो कभी पास बहाना नहीं होता

सच के तो कभी पास बहाना नहीं होता
जो छीन के मिलता है वो पाना नहीं होता

रहने लगी है ज़िन्दगी कमरों में यहाँ बन्द
मिल जुल के अब तो बैठ के खाना नहीं होता

यादों में बसी रहती है खुशबू वही ताज़ा
बस प्यार कभी पहला पुराना नहीं होता

अब आदमी खुद से ही उदासीन है इतना
बस भागता है हँसना हँसाना नहीं होता

ऐसे भी गवैये बने फिरते हैं कुछ कवि
कविता से ही जिनका कभी नाता नहीं होता

तू मुझको बुला मैं तुझे ये दौर चला है
अब महफिलों में इसलिये जाना नहीं होता

हम हो गये हैं ‘अर्चना’ कुदरत के जो दुश्मन
मौसम भी बहारों का सुहाना नहीं होता

15-10-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Loading...