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28 Sep 2019 · 1 min read

प्रभात

||मतगयंद सवैया ||

लोचन रश्मि निहार मनोहर ,अंतर नेह अलौकिक जागे !
क्षीर प्रभात चिरंतन बिंबित, नूतन अंबर निश्छल लागे !
नागर श्याम विराट विखंडित, प्राण सदा रस सागर माँगे !
सुन्दर छाँव सुकोमल पावन, दीप जला गुरु चेतन आगे !!

छगन लाल गर्ग “विज्ञ”!

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