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23 Jun 2019 · 1 min read

जिद्दी मन

कहीं उडती हुई रेत का बबंडर थामने की जिद् है
कहीं नफ़रत मे आमने सामने की जिद् है
कहीं बद से बद्तर हो गई हैं यादों की बारिशें
न बरसती है न बनकर भाप आंखों से टपकती हैं
कहीं मन सूना है किसी के चले जाने के बाद
कहीं दिल तडपता है किसी के गुजर जाने के बाद
कहीं बादलों की काली स्याह अठखेलियां हैं
कहीं आसमानों में तारों बीच तेरी हवेलियां हैं
कोई कह के गुजरा है भरोसा कर नसीब पे
मुकद्दर से खफ़ा शायद मेरी हथेलियां हैं

Priy@Dd

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