मुक्तक
” सियासत की सभी गहराइयों को नाप बैठे हैं,
वही तो देश की धरती पे बन अभिशाप बैठे हैं,
वहां उम्मीद क्या होगी सुरक्षा की, कहो तुम ही
जहां पे कुंडली मारे हज़ारों सांप बैठे हैं “
” सियासत की सभी गहराइयों को नाप बैठे हैं,
वही तो देश की धरती पे बन अभिशाप बैठे हैं,
वहां उम्मीद क्या होगी सुरक्षा की, कहो तुम ही
जहां पे कुंडली मारे हज़ारों सांप बैठे हैं “