मुक्तक
” जुगनू हवा में लेके उजाले निकल पड़े
यूँ तीरगी से लड़ने जियाले निकल पड़े
सच बोलना महाल था इतना कि एक दिन
सूरज की भी ज़बान पे छाले निकल पड़े “
” जुगनू हवा में लेके उजाले निकल पड़े
यूँ तीरगी से लड़ने जियाले निकल पड़े
सच बोलना महाल था इतना कि एक दिन
सूरज की भी ज़बान पे छाले निकल पड़े “