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22 Feb 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

मासूमों का कातिल है तू
ओछा है औ जाहिल है तू

हरकत से बाज़ न आएगा
धूर्त बदी की मंजिल है तू

जिसमें मौतें ही बहती हों
उस दरिया का साहिल है तू

धोखे से तू करता घातें
कायरता का काइल है तू

जाती जो सीधे दोजख़ को
एक बदनुमा मंज़िल है तू

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

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