मुक्तक
“आज सपने मेरे अश्क में ढल रहे हैं,
ये जिगर के दिए ख़ून से जल रहे हैं,
परायों की नज़रों को भाए हैं, लेकिन
अब हमारे ही अपने हमें छल रहे हैं “
“आज सपने मेरे अश्क में ढल रहे हैं,
ये जिगर के दिए ख़ून से जल रहे हैं,
परायों की नज़रों को भाए हैं, लेकिन
अब हमारे ही अपने हमें छल रहे हैं “