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2 Feb 2019 · 1 min read

इज्जत

इज्जत
छिटपुट लोगों से भरा रस्ता
और हाथों में लिए एक बस्ता
चलती भोली-सी लड़की
सहसा बिजली सी कड़की
कुछ मनचले खड़े सामने
जबरन दामन लगे थामने
रही वो चीखती,चिल्लाती
इज्जत अपनी पुरजोर बचाती
छली भेड़िये बली,बहरे हुए
वहशीपन से अति भरे हुए
आखिर,कबतक पार वो पाती
हा! बुझ गई दिए की बाती
तनया का तनमन तमाम
कुचले जा रहे सरेआम
संस्कृति को नोचते बाज़
कबतक?मनन करे समाज
-©नवल किशोर सिंह

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