मुक्तक
तू मुझे मिल जाए ख़ुदा से रोज़ कहती हूँ मैं,
तू वजह जिसके लिए ख़ामोश सी रहती हूँ मैं,
कुछ नहीं मिलना मुझे मालूम है अच्छी तरह
फिर भी जैसे तुझ को ख़ुद में ढूँढती रहती हूँ मैं”
तू मुझे मिल जाए ख़ुदा से रोज़ कहती हूँ मैं,
तू वजह जिसके लिए ख़ामोश सी रहती हूँ मैं,
कुछ नहीं मिलना मुझे मालूम है अच्छी तरह
फिर भी जैसे तुझ को ख़ुद में ढूँढती रहती हूँ मैं”