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27 Jan 2019 · 1 min read

काश अभी बच्चा होता

काश अभी बच्चा होता
मेरे खिलौने साथ रहते
मैं घर का शहनशाह होता ।

मेरा चिलाना मेरी मनमानी नही
मेरी आवश्यक्ता होती,
रो रो कर बुरा हाल कर लेना ,यह मेरी कमज़ोरी नही
मेरी प्रकृति होती

रात भर जगना और जगाना होता ।

नानी दादी का मनोरंजन करता
उनके चश्मों को मैं गिराता
दादा- नाना देख देख के होते खुश
ऐसा मिलेगा न कहीं सुख

मेरे मुख से निकला आवाज
किसी का सम्बोधन होता।

मेरी गर्जन से थर्राते लोग
करते पहले मेरा काम
दादी पूजा – पाठ छोड़
दौड़ी आती मेरे पास

गोद में उठाकर मेरा पूजा होता ।

मम्मी की मनमानी न चलती
मेरी हरकतों पर आहें भरती
कहती बाबू करो न हमको इतना परेशान
घर पर आए हैं नए मेहमान

यह देख- देख कर खुश होता
काश अभी बच्चा होता ।

साहिल की कलम से ☺️……

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