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22 Jan 2019 · 1 min read

गणतंत्रता दिवस पर एक संदेश

कुछ अल्फ़ाज़ों से
चिढने लगा हूँ
अखंड भारत को टुकड़ों में
बँटते देख रहा हूँ..

हो रही हैं मजहबी बातें..
जबकि तुमने किये है
असाम्प्रदायिक वादे.

सहन कर रहा हूँ
हैं कौन सी वे ताकतें..
छोड़ दें सब सियासतें..
जो भारत की एकता अखंडता में बाधक हों,

तिरंगा जिसकी अपनी शान हो.
अशोक-चक्र देता संदेश हो.
विश्व में जिसकी अपनी एक पहचान हो,
लोकतंत्र है खुद का संविधान हो.

एक छत के नीचे क्यों खण्डित बातें हों.
कुछ बातें शक पैदा करती है.
सोचने पर मजबूर करती हैं.

क्या मैं ही भारत हूँ..
यही मेरी वंदना..
कुछ अल्फ़ाज़ों से
चिढने लगा हूँ

जनवरी 26
गणतंत्रता-दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

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