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2 Dec 2018 · 1 min read

फिर संभल जाउंगी

जिंदगी को जितना समझने की कोशिश की है,
उतनी ही ज्यादा, उलझनों से भर जाती है |

जिंदगी को हर बार जीतने के लिए दांव लगाती हूँ,
वह समंदर की लहरों की तरह, छू कर निकल जाती है|

है ख्वाहिश आसमान में, बादल की तरह उड़ने की,
सरसराहट सी हवा बन कर छितरा कर चली जाती है|

जिंदगी तूं अपना खेल खेलती रह बच्चे की तरह,
मैं भी हार नहीं मानूंगी, गिर कर फिर संभल जाउंगी|

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