Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Nov 2018 · 1 min read

अपनी छत

आज फिर बेगानी छत छोड़,
नए छत की तलाश है करना।
सर की छत अपनी कहलाए,
पूरा करना है ख्वाब सुनहरा।

कई तरह की छते देख ली,
अपनी नहीं अजनबी देख ली।
अब थम जाए बस अपने पग,
सर पर आ जाए अपनी छत।

एक ऐसा दरवाजा ,
जो समझे दस्तक मेरी,
दीवारों पर उकेरी जाए,
चित्रकारी मेरे बच्चों की।

इस भूमंडल में हो एक ऐसा कोना,
जो अपना बन जाए।
कठिन कितनी हो डगर,
सर पर छत अपनी कहलाए।

स्मृतियां सजाए जिसमें कई हजार,
हर कोने को सजाएं अपने अनुसार।
बचपना समेटे बच्चों का और
महसूस करें सुखद अहसास।

भारती विकास (प्रीति)

Loading...