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20 Nov 2018 · 1 min read

मां

माँ रोपति है बेटियों के अंदर “माँ”
अनजाने में पनपती जाती है बेटियों के अंदर “माँ”

किचेन की लिस्ट बनाना, सबके जन्मदिन को याद रखना
बच्चों के स्कूल की ड्रेस,
अखबार और चाय सबतक पहुंचाना
बीमारी में उठकर घर सम्भालना
दादा जी के दवाई को वक़्त पर देना
दादी के घुटनो मे मालिश करना

बारिश के पकौडों तलते वक़्त गीली तौलिया लेकर दरवाजे की तरफ भागना
किसी को स्वेटर पहनाना, किसी को शाल उढ़ाना खुद के जुराबो को भूल जाना

बेवक़्त सोना और वक्त से पहले जगना
सबके वक़्त का ख्याल रखना
लापरवाही के ताने सुनना
आत्मनिर्भर होकर भी
केंद्रित होना/ सहना/ बेहतर के लिए प्रयत्नशील रहना
सोते हुए बच्चों के माथे पर स्नेह की मुहर लगाना

चाय के गर्म कप का डायनिंग मे घण्टो ठंडे होने के लिए छोड़ देना
पैरो की चुभन/ बालों को सवांरना/ खाने के वक़्त नास्ता और खुद की बीमारियों को छुपा लेना।

बो देती एक स्फुट “माँ” बनने का
किसी दरख्त की छांव मे, बेखबर
माँ रोपती है बेटियों के अंदर “माँ”।।

#vibharuby

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