Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Oct 2018 · 1 min read

भ्रष्टाचार

एक सवाल मन में उमड़ घुमड़ के उठता है
अपने देश में ही क्यूँ भ्रष्टाचार फैला है ,

नेता बने हैं अभिनेता कितने गप -सप करतें रहतें हैं
लाशों के सिर पे चढ़ के भी राजनीती वो करतें हैं ,

नेता और अधिकारीयों का धन पिपासा मिटती नहीं
मेहनत कस लोगों को देखो गठरियों से लगतें हैं ,

भिन्न -भिन्न रंग धर्मों वाला अपना देश महान है
फिर क्यूँ हिंदू -मुस्लिम में दिन रात होता दंगा है ,

मनुष्यता यहाँ रौंदी जाती,इंसानियत यहाँ नंगा है
अपने देश में ही तुम बोलो , क्यूँ भ्रष्टाचार फैला है ,

बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं का दिन रात लगते नारा हैं
उनका ही घर देखो बलात्कारियों का अब ठिकाना है ,

गम मत करना जाग चुकी है जनता आधी
आधी अभी हमें जगाना है ,मिल कर हमको
नए काल में नया जमाना लाना है /
*
[मुग्धा सिद्धार्थ ]

Loading...