Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Oct 2018 · 1 min read

मतलबी

आज लिखूँगा मतलब की बातें,
नही बोलना क्यों मैं मतलबी हुँ।
है हर शख्स फँसा उसी दायरे में,
गर मतलब नहीं तो अजनबी हुँ।।

है बाप से मतलब, पूत से मतलब,
बना मतलब का ही रिश्ता नाता है।
बिन मतलब के यहाँ कौन है बोलो,
कीसके पास नही ये बही खाता है।।

ये पत्नीव्रता, वो जोरू का गुलाम,
सब मतलब से नए आयाम लिखे।
वो माँ का लाडला कब हुआ भक्त,
उसपे कटुता के शब्द तमाम लिखे।।

उस पुष्प से भंवरे को काम नहीं
जिसपे मधु की चढ़ी खुमार नहीं।
वह दीपक भी सकल नकारा है,
जिससे परवाने को दरकार नहीं।।

यह मेरा है, वह तेरा है, ये कौन हैं,
इसका तो मुझको भी इल्म नही।
वह दाता, जयकारा उनका सदा,
शत प्रतिशत उनका जुल्म नही।।

वो जो मतलब साधे, क्या नेता हैं,
या मतलबी, जन्मते अभिनेता हैं।
फिर क्यो अपनो से व्यापार कियें,
क्या ये रिश्तो के, क्रय बिक्रेता हैं।।

करें मॉफ हुज़ूर गर कोई भूल हुई,
पर दिल दुखता है तो बोलेंगे ही।
न छोड़े मतलब के हानि लाभ तो,
हर रिश्तो को तराजू पे तौलेंगे ही।।

अब कुछ कह लेना कुछ सह लेना,
कुछ मुस्कुराहटों के बीच दबा लेना।
जलते चिराग के बिखरे प्रकाश सा,
रिश्तो को हँस के ताउम्र निभा लेना।।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०/१०/२०१८ )

Loading...