Poem on “Maa” by Vedaanshii
“कविता लिखने बैठी हूँ”
कविता लिखने बैठी हूं –
मैं क्या कविता लिखूं?
जब कविता ने ही मुझे लिखा हो..
(संयोग से मेरी माँ का नाम कविता है। बहुत प्यारी माँ थीं। दुनिया की हर माँ बहुत प्यारी होती हैं। देवयोग से मेरी प्यारी माँ भगवान को प्यारी हो गईं। मेरी यह पंक्तियाँ उन्हीं को समर्पित हैं।)
मेरे जीवन का रंग थीं तुम
मेरे अंधकार में गुनगुनी धूप थीं तुम
मेरे दिल की हर धड़कन थीं तुम
मेरी हर मुस्कान का एहसास थीं तुम
अब न जाने कैसा बेरंग हो गया जीवन है
तुम्हारा एहसास बस साथ रहता है
आंख भर आती है
लगता है तुम आज भी मुझे पुकारती हो
तुम्हें गले न लगा पाने की टीस रुला देती है
कैसे याद न करूं – जब हर पल तुम्हारे नाम लिख दिया था
अब हर पल बस तुम ही याद आती हो
तुम खुश होती थीं – लगता था दुनिया जीत ली मैंने
तुम जब उदास होती थीं – लगता था दुनिया से लड़ लूं मैं
मैं गुस्सा करूं और तुम्हारी प्यारी सी मुस्कुराहट
पल भर में मेरे गुस्से को छू-मंतर कर देती
याद हैं वो दिन भी जब लोग हमें देख कर जल करते थे
परछाईं है अपनी माँ की ये कहा करते थे
और तुम आज भी मेरा हाथ थामे खड़ी हो – यह मेरी अंतरात्मा जानती है
जब भी बात तुम्हारी हुई – देखा है मैंने स्वयं को अपनी हदें पार करते हुए
तुम्हारे साथ के लिए – अपनी क्षमता से ऊपर जाते हुए
प्रेम की जब भी बात आई – तुम्हारी ही बस याद आई
मेरी खुशी का तो एक ही पता है – तुम्हारे साथ ही लापता है
यूँ प्रेम से अपना नाम सुनने को तरस गई हूं
हो सके तो एक बार और – स्वप्न में ही सही – पुकार लो ना मुझे
जिस तरह तुम हमेशा समझदारी दिखातीं
मुझे हमेशा एक सीख मिल जाती
सही – गलत का पाठ भी तुमने ही पढ़ाया
और उसके लिए लड़ना भी तुमने ही सिखाया
सोचती हूं तारीफों से पन्ने भर दूँ
फिर सोचती हूं शुरू कहां से करूं
कविता लिखने बैठी हूं –
मैं क्या कविता लिखूं?
जब कविता ने ही मुझे लिखा हो..
जब कविता ने ही मुझे लिखा हो..
~ वेदांशी विजयवर्गीय,
9754991472, Shrishrienterprises60@gmail.com