ll घर की अमावस का प्रदीप प्रबल -माँ ll
घर की अमावस का प्रदीप प्रबल
लड़े अंधियारे से, वो दीप है माँ!
बन दीपावली जो करे जगमग
जीवन सबका, वो उत्सव माँ!
है छांव कभी,कभी धूप भी है
पर ढाल सदा,दुख में अपनी,
है कड़क सेनानी सी वो कभी
कभी मीठी मधुर जलेबी सी ।
भटक कहीं भी जाऊं मगर
मेरा ध्रुव तारा हो नभ में तुम,
स्वेटर के ताने बाने में
बुनती रहती हो ख्वाब जो तुम,
मैं छू लूं शिखर बनूँ सबसे प्रखर
रखती हो व्रत उपवास भी तुम।
आंखों से पीर पढ़े बिन कहे
धड़कन हो, इक एहसास हो तुम
कोई तीर नही तलवार नहीं
पर दुर्गा बन लड़ जाती हो तुम।
हर घर मे दीप उम्मीद का हो
एक अंश ईश का हो तुम माँ।
-सुनीता राजीव, दिल्ली।