Karmyogi shri krisna
विषय- कर्म योगी श्री कृष्ण!
विधा – गीत!
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!
साधना तज सिद्धि पाई , युद्ध लीला मर्म में!
ब्रह्म चेतन तत्व जाना , फूल काँटे साथ है !
सृष्टि के हर रूप में बस, ईश का ही हाथ है !
छल कपट के युद्ध में रस , भावना थी धर्म में!
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!!
वंश कौरव शक्ति पाकर , भूलता था साध्य को !
दुष्ट दुर्योधन कर्ण कंधे,चाहता था राज्य को !
द्रोण जलते आग बदला , था न कोई शर्म में!
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!!
भीष्म आगे कर शिखंडी, मार डाला चाल में !
कर्ण का रथ फँस गया , था निहत्था जाल में!
कूटनीतिक चाल से ही , युद्ध जीता धर्म में !
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!!
संग सबके मित्र प्यारे , शत्रु किसको जानते !
धर्म रक्षा काल आता , न्याय कारण मानते !
कर्म योगी मीत प्यारे , कंठ बसते मर्म में!
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!!
बाँसुरी में राग घुलते , राधिका के नेह में!
पूर्णता को प्राप्त होते , प्राण दर्शन देह में!
चोर माखन रास लीला , मोह भीगे वर्म में!
कृष्ण योगी पूर्ण मानव , न्याय चाहा कर्म में!!
छगन लाल गर्ग विज्ञ!