Ishq gunah
है लाख बुराई मुझ में लेकिन तूझ से मैं अच्छा रहा
बोलता रहता बहुत बार झूठ , पर तूझ से मैं सच्चा रहा
नहीं थी परवाह कभी किसी की , तेरी परवाह में ही रहता था
नहीं दी कभी किसी को पनाह मैनें
तूझें श्वासों में बसा रखा था
कभी न था भरोसा ईश्क पर
तूझ से हुआ ये गुनाह मेरा था।