II…हदों को तोड़ आया हूं II
इश्क की सारी हदों को तोड़ आया हूं l
कोरा सा दिल एक पता लिख छोड़ आया हूं lI
अब ना जानू रात दिन में फर्क है कितनाl
मैं लुटा कर चैन अपना जख्म लाया हूं ll
अपने हिस्से की खुशी को ढूंढना मुश्किल l
देख गैरों की खुशी क्यों अब मुस्कुराया हूं ll
घूर कर वो देखना अनजान नजरों से l
मैं बताऊं वो न जाने उनका साया हूं ll
ढूंढना मुझमें सुकून नादानियां तेरीl
बिजलियों के बीच में ऐसा ठिकाना हूं ll
ना मिला कुछ भी सिला सब कुछ छुपाने से l
है “सलिल” जीना जो तुमको मैं बहाना हूं ll