II ये जरूरी नहीं II
मानो तो ये दुनिया है,मानो ये जरूरी नहीं l
जीवन में कई रस्मे,जानो ये जरूरी नहीं ll
मकसद से ही बढ़ता है,हर एक कदम उसका l
जो होता वो होने दो,समझो ये जरूरी नहीं ll
अफ़सोस यहां हमने,दिन बैठे ही गुजारे हैं l
उठ जाओ चलो अब तो, पहुंचो ये जरूरी नहीं ll
हर एक नया पत्ता, कभी शाख से टूटेगा l
तकरार भि वाजिब है,रूठो ये जरूरी नहीं ll
कुछ एक कदम चल कर,मेरे साथ में तो देखो l
माना कि अंधेरे हैं ,कल भी हो ये जरूरी नहीं ll
मौसम की बारिश में,सब खुश तो नहीं होते l
भिगो मेरी ग़ज़लों से ,चहको ये जरूरी नहीं ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l