II…….मेरे अपने हैं II
सब के अपने सपने हैं ,मेरे सपनों में अपने हैं l
अपनों के लिए जीता, नहीं अब सपने अपने हैंll
कैसे भी चलो राही, नजर आती नहीं मंजिल l
सफलता कैसे नापे हम, छोटे सारे नपने हैं ll
कभी ना साथ थी किस्मत, ना आगे ही भरोसे हैं l
दो हाथों का भरोसा है ,यही तो मेरे अपने हैं ll
संजय सिंह “सलिल ”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l