II बिना बहर के कुछ शेर II
पलकें झुकाकर हम पर ना अहसान कीजिए l
ये अजनबी मुसाफिर पहचान कीजिए ll
दो लम्हा जिंदगी यह हंस कर गुजर जाए l
हो ऐसा फन कोई तो शुरुआत कीजिए ll
वक्त की है बंदिशे पाबंद आदमी है l
इन बंदिशों की कम कोई दीवार कीजिए ll
ऐसा भी क्या यहां जो मिल ही ना सके l
खुशबू है गवाह फूल का एहसास कीजिए ll
यह दर्द ए जिंदगी दो पल से अधिक क्या l
खुशी से अगर इसको गुजार दीजिए ll
चांद पर जाने को बेताब आदमी है l
धरती पे क्या नहीं उससे बात कीजिए ll
यह दूर के रिश्ते बस दूर से ही अच्छे l
पास आकर इनको न बर्बाद कीजिए ll
सारी दुनिया है मुसाफिर दो पल के वास्ते l
पहचान ठीक है दिल की न बात कीजिए ll
याद आएंगे बहुत ए मरने के बाद भी l
हो दिल से दुश्मनी तो इन्हें प्यार कीजिए ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l