II दीप उम्मीद का II
मुश्किलें भी मिली चैन जाता रहा l
ठोकरों से सदा जख्म पाता रहा ll
चांद आता रहा और जाता रहा l
दीप उम्मीद का जगमगाता रहा ll
कितनी रातें कटी भोर की आस में l
मन बिना बांसुरी गीत गाता रहा ll
राह मुश्किल रही है सदा प्रीत की l
कांटे चुभते रहे मुस्कुराता रहा ll
अन कहा ही रहा उस से रिश्ता मेरा l
बिन वादे हि वादा निभाता रहा ll
प्रीत की रीत ऐसी हि होती “सलिल” l
जाने वाला हि राह दिखाता रहा ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l