II तीर शब्दों के बना…. II
तीर शब्दों के बना कर , लेखनी में धार कर l
चल उठा अपनी कलम तू, जंग का आगाज कर ll
देश-दुनिया सब कलंकित, भ्रष्टता अभिशाप है l
गूंजे जग में ,कर दे हलचल ,ऐसे तू हुंकार कर ll
खाने से मरते कहीं पर ,हो रहे फाके यहां l
मन जो कलुषित ,राख कर दे ,शब्दों को अंगार कर ll
लुट रही जो डोलियां, पग-पग पे कुचला मान है l
सो चुका राणा का पौरुष, रक्त में संचार कर ll
खुब बनाती जो सियासत, हिंदू -मुस्लिम भेदकरl
भेद सारे खोलने को, वेद तू तैयार कर ll
शब्द गीता और आयत, यीशु का आधार है l
तीखे करके आज इसको, शब्द भेदी वार कर ll
इस धरा पर आज भी, गंगा भगीरथ ला रहे l
सारे भेदों को भुलाकर ,कर्म का सम्मान कर ll
लिखने को तो है बहुत, पर कुछ मेरी मजबूरियां l
साथ सब को ले के चलना, और सबको प्यार कर ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l