II चांद को भी मालूम II
चांद को भी मालूम, कि चाहता, है उसे कोई चकोर l
बीते तभी तो, रात सुहानी, बांधे नैनों की डोर ll
चांद को भी मालूम ……..
वह भी दूरी ,सह ना पाए ,करे भी क्या कुछ ,कर ना पाए l
उसके आंसू, सुबह मिलेंगे, हर तिनके की पोर ll
चांद को भी मालूम …..
धरती से सदा, दूर गगन है, दूर नदिया के ,दोनो किनारे l
ए दुनिया के, ऐसे बंधन, टूटे ना ,लगाओ कितने जोर ll
चांद को भी मालूम……….
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l