मुद्दा
सियासत को गरमाने को ,
कोई न कोई मुद्दा चाहिए ।
लगानी ही है यदि आग ,
कोई पलीता तो चाहिए ।
वो पलीता कुछ भी हो ,
बस पलीता होना चाहिए ।
एक पलीता सुलग जाए ,
तो उसे भड़काना भी चाहिए।
वोह पलीता उर्फ़ मुद्दा ,
भड़काऊ तो होना ही चाहिए ।
जाति ,धर्म ,भाषा ,क्षेत्र ,
नर नारी कुछ भी होना चाहिए ।
किसानों का आंदोलन ,
प्रधान मंत्री की सुरक्षा में चूक ,
आतंकवाद , महंगाई ,
महिलाओं का आरक्षण ,
पिछड़ी जातियों का आरक्षण आदि ,
अनगिनत मुद्दे नए नए उगते ही रहते है ।
और उगते ही रहे है ,
कुकरमुत्तो की तरह , और वोह ,
उगते ही रहने चाहिए ।
वरना इसके बिना जिंदगी क्या ?
नेता जी तो वो परवाने है ,
सियासत रूपी शमा के ।
शमा जलती रहे यह सदा ,
इसीलिए पलीता / मुद्दा चाहिए ।
ना मिला यदि कोई पलीता ,
तो शमा कैसे जलेगी ?
और परवानों की जिंदगी ,
में क्या अंधेरा नहीं हो जायेगा।
तो जनाब ! सियासत रूपी शमा को ,
भड़काने हेतु पलीता / मुद्दा ,
जरूर होना चाहिए ।