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23 Nov 2021 · 1 min read

प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा

दिप के माफ़ी अक्सर जलते रहो

महत्वाकांक्षा देख अग्र बढ़ते रहो

निःस्वार्थ भाव से हर काम करके

प्रतिपल निरंतर पथ पे चलते रहो

वक्त लगेगा अंधेरे का अभ्र छटेगा

जो चाहा वो अवश्य तुझें मिलेगा

प्रयत्न करना ना छोड़ उजेरे होंगे

वो मंजिल अवश्य ही तुझें मिलेगा

महत्वाकांक्षा की अदम्य लालसा

परस्पर आगे बढ़ने की जिज्ञासा

औरो के प्रति भावना शून्य न कर

निष्ठुरता कैसे दे ये ज्ञान पिपासा

इसका न छोर है ना कोई अंत है

आकाश की तरह ये तो अनंत है

एक पूरा हुआ तो सच मानो यार

दूजे महत्वकांक्षा का जन्म होत है।

©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)

Language: Hindi
274 Views
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