त्योहार मनाओ मिल जुलकर …
त्योहार किसी की बपौती नहीं होते ,
त्योहार सबके साँझे ही है होते ।
बस एक बार अपना मन दर्पण साफ कर लो ,
खुशियां मनाने के यह सुन्दर बहाने हैं होते ।
लोड़ी ,दिवाली ,होली हो या
ईद ,गुरुपर्व या क्रिसमस ।
इंसान को इंसान के करीब लाने के ,
सुअवसर है यह बस ।
मजहब को भेदभाव से दूर कर दिया गर ,
सभी इंसान ही हैं न ईश्वर के बनाए हुए ।
ईश्वर ने ही दी यह त्योहारों की सौगात ,
मेल मिलाप के नियम कुदरत के बनाए हुए ।
इस संघर्ष भरी जिंदगी में किसे चाह ना होगी ,
सुकून और खुशी के दो पल जीने की ।
तुम मेरी दिवाली मनाओ और मैं तुम्हारी ईद ,
तोड़ दे सारी दीवारें अपने बीच की ।
खुशियों पर किसी मजहब का नाम नहीं लिखा ,
नहीं देखा किसी त्योहार पर किसी का नाम लिखा ।
है यह देश की सांझी गंगा जमुना तहजीब ,
सारे संसार में ऐसा संगम क्या किसी ने देखा ?
मिठाइयों ,खीर ,हलवा ,सेवियां और केक ,
इनमें भी लिखा है बस प्यार का नाम ।
एक दूजे को खिलाएं प्यार भरे हाथों से ,
दें जहां वालों को प्यार का पैगाम ।
भारत माता भी महसूस कर संतुष्ट हो ।
भगवान भी देखकर यह खुश हो ,।
उसकी सभी संतानों का परस्पर प्यार ,
जो दया ,करुणा ,प्रेम और भाईचारे से भरा हो ।
त्योहार न हो वोह भावनाओं की नदी हो ,
जिसमें बह जाए प्रत्येक भारत वासी ।
चारों दिशाओं से एकत्रित होकर मंगलमय गान करे ,
हर नर नारी और विभिन्न जाति और भाषा भाषी ।
तभी पूर्ण होगा सुन्दर सपना ,
हमारे महान शहीदों के अखंड भारत का ।
जब सारे पर्व मनाएगा हिल मिल कर ,
प्रत्येक जन भारत का ।