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8 Sep 2018 · 4 min read

राष्ट्रीय हिंदी दिवस

१४ सितंबर २०१८.
राष्ट्रीय हिन्दी दिवस
कुछ समय पहले की बात है जब मैने # यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव २०१८ में हिस्सा लिया, जो कि मध्यप्रदेश के ३०० चिंतनशील युवाओ के साथ एक यादगार अनुभव था । और मै शुक्रगुजार हूं कि उस कॉन्क्लेव के बाद मैने कुछ सकारात्मक परिवर्तन अनुभव किये। आयोजन मे एक सम्पूर्ण सत्र हिन्दी भाषा के ऊपर रखा गया था। इस बात से मै पूर्ण तरह सहमत हूं कि कहीं ना कहीं मैंने भी हिन्दी की उपेक्षा की है किन्तु हिन्दी माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने की प्रकिया में कहीं ना कहीं
मुझे भी अंग्रेजी पर खीज हुई है, सो मैने इस विषय पर कई लेख पढ़े ,तो समझ आया की वाकई में हमारे समाज में अंग्रेजी को लेकर कई भ्रांतियां है। यहां यह बात भी झुंझलाती है कि हमारे देश के कई शिक्षित युवा अंग्रेजी भाषा के मकड़जाल में इस तरीके से फंसे हुए हैं , कि इस बात पर कोई शंका नहीं कि आगे चलकर हमारी आने वाली पीढ़ी रामायण और गीता जैसे महान ग्रंथों को भी अंग्रेजी अनुवाद करके पढ़ रही होगी। इससे पहले कि कोई तर्क पूर्ण रुप से अंग्रेजी का पक्ष लेने लग जाए, हमें यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि हिंदी ना केवल भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है अपितु संपूर्ण विश्व में भी द्वितीय सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ के ६ अधिकारिक भाषाओं में से एक भी भाषा ऐसी नहीं है जिनको बोलने वाले हिंदी भाषा से अधिक हो। हिंदी सिर्फ इसीलिए ही व्यापक नहीं है क्योंकि वह ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है बल्कि हिंदी का साहित्य बहुत ज्यादा व्यापक है एवं उसकी जड़े ज्यादा गहरी है। अंग्रेजी विश्व भाषा नहीं है ,विश्व के 200 देशों में मात्र 14 देशों में अंग्रेजी बोली जाती है यह 14 देश में वही देश है जो अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं । जर्मनी में जर्मन ,फ्रांस में फ्रेंच, जापान में जापानी, चीन में चीनी आदि अपनी ही भाषाओं में कार्य किया जाता है । संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा भी अंग्रेजी नहीं बल्कि फ्रेंच है । अंग्रेजों की जो बाइबल है वह भी अंग्रेजी में नहीं है बल्कि अरीमेक में लिखी है।जो बांग्ला से कुछ मिलती जुलती है ।पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से केवल 3% लोग अंग्रेजी बोलते हैं इस हिसाब से तो अंतराष्ट्रीय भाषा चाइनीज हो सकती है क्योंकि वह दुनिया में सबसे अधिक बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिंदी हो सकती है। किसी भी भाषा की समृद्धि उसके शब्दों से होती है ,अंग्रेजी भाषा में मूल शब्द केवल 12000 ही अन्य शब्द लैटिन ,ग्रीक और न जाने कहां कहां से उधार लिए गए हैं ।अंग्रेजी का कोई अपना व्याकरण भी नहीं है। गुजराती में अकेले 40000 मूल शब्द है ,मराठी में 48000 + मूल शब्द है ,और हिंदी में 70000 + मूल शब्द है। कैसे माना जाए कि अंग्रेजी बहुत समृद्ध है ।हमारे शहरों के बराबर छोटे-छोटे देशों में हर साल नोबेल पुरस्कार विजेता पैदा होते हैं, किंतु भारत में नहीं ,क्योंकि हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक कार्य नहीं किया जा सकता केवल रट सकता है। पूरे जापान में जितने भी इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज इन सब में जापानीज में पढ़ाई होती उसी तरह फ्रांस में बचपन से लेकर उच्च शिक्षा तक सब फ्रेंच में होती है । संसार के सभी वैज्ञानिकों का मानना है कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे अच्छी भाषा है। नासा ने ‘ संस्कृत मिशन’शुरू किया है ।यदि अंग्रेजी इतनी भाषा अच्छी होती तो यह अंग्रेजी को क्यों छोड़ती । अंग्रेजी और हिन्दी में सबसे बड़ा अंतर यह है कि अंग्रेजी में मस्तिष्क का इतना विकास नहीं हो पाता जितना हिंदी में होता है। अंग्रेजी सीधी और बिना मात्राओं की भाषा है, जबकि हिंदी में घुमावदार टेढ़े-मेढ़े शब्द है ।संस्कृत में यह गति तीव्रतम है, इसलिए अमेरिका संस्कृत का दीवाना है। यदि देश के हर शाला में हिंदी को अनिवार्य दिया जाए तो हिंदी आगे बढ़ सकती है। यदि सही मायने में हम हिंदी के उपासक हैं और हिंदी को पनपता देखना चाहते हैं, तो सभी सार्वजनिक व सरकारी प्रतिष्ठानों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। यदि किसी को ऐसा लगता है कि प्रगति के लिए अंग्रेजी जरूरी है तो वह बिल्कुल अंग्रेजी सीखें क्योंकि देश मैं पढ़ने के लिए हिंदी जरूरी है अतः हिंदी सीखें ।हम अंग्रेजी की अवहेलना नहीं कर सकते उसी प्रकार किसी को भी हिंदी की अवहेलना ना करने दिया जाए।
किसी महान कवि ने कहा है।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
जय हिन्द
Priya MatHil

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 3 Comments · 347 Views
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