ग़ज़ल
ग़ज़ल – प्राण शर्मा
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बीवी का कभी हाथ बंटाना नहीं आता
हर मर्द को घर बार चलाना नहीं आता
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करते जतन उनको मिटाने को हमेशा
संतों को कभी झगडे बढ़ाना नहीं आता
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गिरगिट की तरह रंग दिखाएँ,नहीं मुमकिन
हर एक को बेकार में छाना नहीं आऐ ता
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हो जाए भले दोस्ती आपस में दुबारा
वापस कभी सम्बन्ध पुराना नहीं आता
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आये भले ही सपनों में वो रोज़ ही लेकिन
किस्मत के बिना हाथ खज़ाना नहीं आता
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वो क्या किसी रोते को हँसाएगा ऐ यारो
जिस शख़्स को अपने को हँसाना नहीं आता
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ऐ `प्राण` ज़रा दूर ही उससे सदा रहना
यारों के जिसे बोल भुलाना नहीं आता