ग़ज़ल
आज तक मेरा रहा तो क्या हुआ .
हो गया अब ग़ैर का तो क्या हुआ..
कब चला वो आँख अपनी खोल कर.
रास्ते में गिर पड़ा तो क्या हुआ..
मैं तो सहता ही रहा हूँ उम्र भर.
दर्द तुमने सह लिया तो क्या हुआ..
फूँक दी तू ने हमारी बस्तियाँ़
हाथ तेरा भी जला तो क्या हुआ..
झूठ तुम कहते रहे थे आज तक.
सच अगर मैंने कहा तो क्या हुआ..
अनकहे लफ़्ज़ों का मतलब ही अगर.
ढूँढ़ता वो रह गया तो क्या हुआ..
पूछता रहता था वो “मैं कौन हूँ”
आईना बतला दिया तो क्या हुआ ..
मुझको चलने का हुनर आया नहीं.
मैं जो पीछे रह गया तो क्या हुआ..
देखिए महफ़ूज़ हैं कितने महल.
घर अगर मेरा गिरा तो क्या हुआ..
सैकड़ों मरते रहे जिस शख़्स पर.
आज मैं भी मर मिटा तो क्या हुआ..
क़ैद मैं अब तक परिन्दा था “नज़र”.
कर दिया मैंने रिहा तो क्या हुआ..
Nazar Dwivedi