ग़ज़ल
तुम्हारी बेरुखी ने जो दिया सदमा मुबारक हो .
तुम्हें दौलत मुबारक हो मुझे कासा मुबारक हो.. (= भिक्षापात्र)
ज़माने की ख़ता क्या थी, मुझे बदनाम होना था.
मुक़द्दर से जो हासिल है, मेरा चर्चा मुबारक हो ..
न थी उम्मीद मुझको ही, न ख़्वाहिश थी तुझे भी कुछ..
मगर दिल में अचानक ये तेरा आना मुबारक हो..
खुशी मेरे मुक़द्दर में लिखी उसने नहीं शायद.
ग़मों की भीड़ से हासिल मेरा हिस्सा मुबारक हो..
निभाया हर क़दम तुझसे, कभी रो कर कभी हँस कर.
हयाते मुख़्तसर तेरा हरेक लम्हा मुबारक हो..
( क्षणभंगुर ज़िन्दगी )
अता कर दे ख़ुदा तुम को ज़माने में नई शोहरत.
तुम्हारी क़ामयाबी का नया ज़ीना मुबारक हो..
(= सीढ़ी)
कई राहें तो ऐसी हैं जो चलने ही नहीं देतीं .
मगर मंज़िल ये कहती है ” नज़र” रस्ता मुबारक हो..
Nazar Dwivedi