Gazal
किसी की आह से और बेबसी से डरते हैं।
किसी को ग़म मिले ऐसी खुशी से डरते हैं।
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शाने खा़लिक़ में न हो जाए कोई गुस्ताख़ी।
किसी मख़लूक की हम बंदगी से डरते हैं।
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जब से मदहोश हुए हैं तुम्हारी आंखों से।
किसी मयखा़ने की अब मयकशी से डरते हैं।
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इश्क़ करते हैं तो हम जान भी दे सकते हैं ।
सच्चे आशिक़ हैं सदा दिल्लगी से डरते हैं।
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मुझे वह प्यार बहुत करते हैं, हक़ीक़त है ।
कसम खुदा की मेरे मुफलिसी से डरते हैं।
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मेरे तहजी़बो तमद्दुन से बहुत वाकि़फ है ।
अंधेरा दिल में लिए रोशनी से डरते हैं।
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सगी़र जिसने बताया था फलसफा़ मुझको।
न जाने किस लिए वो आशिक़ी से डरते है।
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डॉक्टर सगी़र अहमद सिद्दीकी़ खै़रा बाज़ार बहराइच
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