Gazal
बहुत गहराई है तुझमें यह मैंने डूब कर देखा।
जो साहिल पर तमाशाई उसे मालूम क्या होगा ।
वफा,इखलास, कुर्बानी,अजी ईसार का जज़्बा,
जो फितरत से है हरजाई उसे मालूम क्या होगा।
उठाकर बोझ कंधों पर,निभाया फर्ज़ वालिद का।
कैसे जोड़ा पाई पाई,तुझे मालूम क्या होगा।
मोहब्बत की तेरे कीमत चुकाई इस तरह मैंने।
किया है कैसे भरपाई तुझे मालूम क्या होगा।