Dost
ज़्यादा की चाहत मैं कम मत खो देना दोस्त।
मुहब्बत की आस मैं साथ मत खो देना ऐ दोस्त।
नही करती वायदा की चाँद तक चलूंगी साथ तेरे।
यकीं कर मुश्किल मैं हाथ भी न छोडूंगी ऐ दोस्त।
मुहब्बत होती तो मिट भी जाती एक रोज़।
बंदगी थी मेरी तुम नही समझोगे ऐ दोस्त।
बनिया हूँ हिसाब बराबर कर ही लेती हूँ,
मर्ज़ी तेरी,दे नफरत या मुहब्बत ए दोस्त।
रखकर कफ़स मैं “रत्न” को हासिल न कर पाओगे।
बिखरने दो हवा मैं,रुकुंगी नही खुशबू हूँ मैं ए दोस्त।
गुप्त रत्न