Buddha Prakash Poetry Writing Challenge-2 25 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Buddha Prakash 21 Feb 2024 · 1 min read नीला ग्रह है बहुत ही खास देखो अन्य ग्रहों को, उनकी प्रकृति कितनी दूभर है, कोई आग का पिंड बन गया, कोई हिम खण्ड का गोला है, मुरझाये से दिखते है सब, प्राणियों के बिन सब... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 129 Share Buddha Prakash 20 Feb 2024 · 1 min read सब्र का बांँध यदि टूट गया सब्र का बांँध यदि टूट गया, फलती-फूलती दुनिया उजड़ जाएगी, बसे नगर ढ़ह जाएंँगे, जीवन कुछ क्षण रुक जाएगी, आपदा बन कर आएगी जब, नदियाँ झील और सागर का जल,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 4 147 Share Buddha Prakash 20 Feb 2024 · 1 min read प्रकृति को जो समझे अपना तरस रहा जो बूँद–बूँद को, जल का मोल वही जाने, सूखी रोटी खा रहा चाओ से, अन्न का मूल्य वही जाने, साँसो के लिए जो तड़प रहा, प्राणों की अहमियत... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 121 Share Buddha Prakash 20 Feb 2024 · 1 min read भेद नहीं ये प्रकृति करती सुन्दर गगन चुम्बी इमारतों ने, मन मेरा कितना मोह लिया, स्वच्छ और सुन्दर उपवन संग सजा है, प्रकृति का आशीर्वाद मिला है। निस दिन मानव भू मंडल में, करता है... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 155 Share Buddha Prakash 20 Feb 2024 · 1 min read संभल जाओ, करता हूँ आगाह ज़रा हे ! जग में रहने वाले, संभल जाओ, करता हूँ आगाह ज़रा ! प्रकृति के हो तुम आसरे, यूँ धरा की सुंदरता बिगाड़ो ना !! रमणीयता घने वन- उपवन की,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 2 104 Share Buddha Prakash 18 Feb 2024 · 1 min read मौसम का मिजाज़ अलबेला मौसम का मिजाज़, बनते बिगड़ते देर नहीं, पल भर मे धूप – छाँव, क्षण मात्र में वर्षा का जल, प्रकृति की अद्भुत घटना स्वतंत्र, हृदय प्रसन्न और सुंदर हो मौसम।... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 114 Share Buddha Prakash 18 Feb 2024 · 1 min read पर्यावरण में मचती ये हलचल पर्यावरण में मचती ये हलचल, सुनामी बन कर आती है सागर से, लील जाने को जीवन। पर्यावरण में मचती ये हलचल, महामारी बन कर फैलती बीमारी, पीड़ा देती जीवन को।... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 2 122 Share Buddha Prakash 18 Feb 2024 · 1 min read अपनी धरती कितनी सुन्दर अपनी धरती कितनी सुन्दर, कितना सुंदर वन उपवन यहाँ, हरे- भरे पेड़ और पौधे, हरियाली इसकी है शान। अपनी धरती कितनी सुन्दर, ऊँचे पर्वत शिखरे अपार, जहाँ होते है मेघों... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 3 186 Share Buddha Prakash 17 Feb 2024 · 1 min read जग जननी है जीवनदायनी जग जननी है जीवनदायनी ।। करती सबसे अच्छा व्यवहार, रखें हम मानव इसका ख्याल, ना करे संसाधन बर्बाद, सीमित ये सम्पदा है अपनी, अन्यथा हो जाएगी जल्द ही समाप्त। बोलो... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 2 1 181 Share Buddha Prakash 17 Feb 2024 · 1 min read धरा प्रकृति माता का रूप खुशहाली है जहाँ सदाबहार, ऐसी धरती है अपनी प्यारी, बोझ नहीं जो समझती तुमको, माँ की भांँति सब न्यौछावर करती। हरा–भरा वन उपवन , सागर, नदिया, झील-सरोवर, ऊँचे पर्वत और... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 191 Share Buddha Prakash 16 Feb 2024 · 1 min read ध्वनि प्रदूषण कर दो अब कम कल-कल करती नदियों का स्वर, सरसराहट करके बहते पवन । बारिश की हल्की छम-छम का मधुर आनंद, सुरीली ध्वनि कोयल और पंछियो की, धरा मे भरते कितने सरगम।। प्रकृति के... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 190 Share Buddha Prakash 16 Feb 2024 · 1 min read अपनी चाह में सब जन ने अपनी चाह में सब जन ने, राह बनायी स्वार्थ भाव से, भूल गये किस पर है निर्भर, उस प्रकृति को भी हानि पहुँचायी। अपनी चाह मे सब जन ने, सुन्दर... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 2 1 122 Share Buddha Prakash 16 Feb 2024 · 1 min read जल बचाओ , ना बहाओ जिस धरा मे बसते है जीवन, उस जीवन का एक ही आधार, जल ही जीवन, अमृत जीवन का, इसको बचाना महत्वपूर्ण है सदा। बिना जल के प्यास नहीं बुझती, प्राण... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 118 Share Buddha Prakash 16 Feb 2024 · 1 min read प्रकृति ने चेताया जग है नश्वर घन -घोर घटा जब छा गए, रिमझिम-रिमझिम बारिश आ जाये, बरसात का टूटा शैलाब, बादल फाटा ये हुआ आपदा, बढ़ गयी नदियों में जल की तादाद, बिस्तार हुआ और आ... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 159 Share Buddha Prakash 15 Feb 2024 · 1 min read मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को भूमि अपनी हो गयी मैली, होती थी उपजाऊ और सुनहली, स्वस्थ मृदा मे बोते थे बीज, लालच मे पड़ कर खाते है विष, रासायनिक उर्वकों का उपयोग, जहरीले कीटनाशको का... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 2 151 Share Buddha Prakash 15 Feb 2024 · 1 min read पेड़ से कौन बाते करता है ? मूक बाधिर जीवित , इन पेड़ से कौन बातें करता है? कौन पूछता इनका हाल , जिनके फल-फूलों से जग पलता है, गर्मी में जो छाया देते, सर्दी में लकड़ी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 2 1 142 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read धरा और इसमें हरियाली धरा और इसमें हरियाली, यहाँ जीवन और जीवित है प्राणी, सौर मंडल का एकलौता ग्रह, नीला ग्रह पृथ्वी है हरा भरा। जल और थल से मिलकर बना, वायुमंडल से है... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 211 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ धरती को हमने बचाया, यदि सभी ने पेड़ लगाया, अशुद्ध धरा की वायु गैस को, कार्बन के कण को अवशोषित करके, हरे भरे पेड़ ने प्राण वायु हमको दिया। हरे... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 2 225 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read संसाधन का दोहन डोल रही एक, एक दिन धरा प्रचंड, थर थर कांप रहा था, भूमंडल का हर अंश । वन उपवन हैरान हुए सब, उजड़ गया क्या कोई वन ? जल स्रोत... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 197 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read जल प्रदूषण दुःख की है खबर जल प्रदूषण दुःख की है खबर, दूषित जल बीमारियों की जड़, पर्यावरण संरक्षण दुश्वार, होगी बड़ी चिंता की बात। कारखानों का दूषित जल, मत बहाओ नदियों में कल, कचरा और... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 2 141 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read जल संरक्षण बहुमूल्य जल का संरक्षण करना, है नहींं कोई बड़ी बात, घर - घर यदि ध्यान दे, हर मानव पहचान ले । जल संरक्षण अपना दायित्व, जन-जीवन है इसके आधीन, बच्चा बूढ़ा... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 174 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read वन को मत काटो वन को मत काटो , अपने निजी स्वार्थ मे, वसुंधरा का एक हिस्सा है, प्राणियों के जीवन का किस्सा है। वन देते है फल–फूल और औषधियाँ, जीव-जंतुओ का होता है... Poetry Writing Challenge-2 2 193 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read रो रो कर बोला एक पेड़ रो रो कर बोला एक पेड़, मत काटो मुझको ये दोस्त । दोस्ती का खूब फर्ज़ निभाऊँगा, मीठे मीठे फल खिलाऊँगा।। हरा–भरा तुम मझको है रखना, शुद्ध हवा तेरे जीवन... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 144 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read वायु प्रदूषण रहित बनाओ हम जीव है पृथ्वी के, श्वास लेते है इसी वायु में, मिल कर बना है कई गैसों से, वायुमंडल में है मिलते। शुद्ध वायु ऑक्सीजन अपनी, प्राण सभी के निर्भर... Poetry Writing Challenge-2 2 177 Share Buddha Prakash 14 Feb 2024 · 1 min read ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें, ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें, इस धरा के होते गर्व सदैव, अमूल्य धरोहर जग के प्राणियों का, मानव का विशेष प्राकृत धन है। ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें, बनते रक्षक और बनाते... Poetry Writing Challenge-2 · कविता · प्रकृति की छाव में 1 180 Share