Bye December
जा रहे हो
दिसंबर
तो ख़ुशी ख़ुशी से जाओ
और इस बात का वादा लेते जाओ
कि जब अगली बार आओगे
तो मुझे और भी मज़बूत पाओगे
देखोगे खुद को कितना बदल लिया मैंने
कैसे कैनवास पे रंग भर लिया हमनें
और सुनो दिसंबर,तुमसे एक बात सीखी
जिंदगी कभी भी एक सी तो नहीं रहती
जो सूरज अभी सबको लुभा रहा है
मई में वहीं सबसे गालियां खा रहा है
जो स्वेटर,मफ़लर तन से चिपके है
जून में किसी कोने में बेचारे दुबके है
कलेंडर को बड़ा गुमान था
रोज़ तारीखों को बदल देता था
और एक तारीख ऐसी आई जनाब
उसने पूरा कलेंडर ही बदल दिया
जो शून्य हमें समझते थे
हमारी हर बात पे हंसते थे
ये शून्य किसी करोड़ के पीछे हो लिया
अरबों का बिक सबका मुंह बंद कर दिया
तो दिसंबर आराम से जाना
और नए साल में सबकी खुशियां लाना
सब के चेहरे पे मुस्कान सजती रहे
ये साल सबको खुशहाली,तरक्की दे
दीपाली अमित कालरा