Baqi hai
पुराने शहर में मेरा मकान बाकी़ है।
सब ज़मी दोज़ है लेकिन निशान बाकी़ है।
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अभी भी बाकी है कि़स्सा जु़बान पर कोई।
ज़हन में लोगों के नामों निशान बाकी़ है।
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शहर में आके भुला दी है गांव की यादें।
हमारे गांवों में सब खानदान बाकी़ है।
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ज़मीर बिक नहीं सकता हमारा दौलत से।
ग़रीब हूं मगर मुझ में ईमान बाकी़ है।
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गर चे शाहीन परिंदा हूं ऐ ज़मी लेकिन।
मेरी उड़ान को कुल आसमान बाकी़ है।
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अगर चे सीता भी इल्ज़ाम से न बच पाई।
अब मुझे लगता मेरा इम्तिहान बाकी़ है ।
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तुम्हारे होठों को मेरी ग़ज़ल मुबारक हो।
हमारे इश्क़ में कुछ जा़फरान बाकी है।
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तुम्हे ही तंग करूंगा,न तंग कर दामन।
हमारी रूह में अब तक थकान बाकी़ है।
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सगी़र मुझ पे बरसता है आज तक पत्थर।
रकी़बों के लिए मेरा मकान बाकी़ है।
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डॉक्टर सगी़र अहमद सिद्दीकी़ खैरा बाजार बहराइच