चुनाव आया
चुनावी परिवेश पर आधारित आप सभी को सादर समर्पित एक नवरचना ——-
चुनाव आया, चुनाव आया, चुनाव आया ।
वोटों के दरिया में , नोंटों का बहाव आया ।
चुनाव आया……………….. ।
दारू ख़ुल्ली बिख़रेगी,
किसकी किस्मत निख़रेगी ।
नेता घर घर जाएँगे ,
वोटर के पैर दबाएँगे ।
वोटर आँख़ दिख़ाएगा ,
नेता को रोज घुमाएगा ।
नेता के संग वोटर में ,
बदलाव आया ।
चुनाव आया……………………. ।
घर-घर में ये चर्चा होगा ,
गली गली में पर्चा होगा ।
जिसका जितना ख़र्चा होगा ,
उसका उतना दर्ज़ा होगा ।
दर्ज़े पर ही कर्ज़ा होगा ,
कोई सिंहासन पाएगा पर ,
किसी का ढीला पुर्ज़ा होगा ।
देख़ें किस पर किसका प्रभाव आया ।
चुनाव आया …………………..।
एक ओर घर में घमासान होगा ,
एक ओर वोटर भी अञ्जान होगा ।
किसी ओर बाबरी का मुद्दा होगा ,
कहीं मुद्दा-ए-मन्दिर, शमशान होगा ।
वादों की ख़िचड़ी होगी ,
कसमों का अचार होगा ।
छोड़कर लज़ीज़ियत को ,
स्वाद में ठहराव आया ।
चुनाव आया …………………….।
कूटनीति,राजनीति त्याग, लिए ताज़नीति ।
कर्मनीति,धर्मनीति छोड़ करें, ये अनिति ।
जातिगत व्यवहार करैं,
वोटों का व्यापार करैं ।
योग्यता को छोड़ सभी ,
आरक्षण से प्यार करैं ।
आज नैतिक सत्य है ये ,
तभी तो बिख़राव आया ।
चुनाव आया ……………………..।
पाँच साल आए नहीं ,
सूरत ये दिख़ाए नहीं ।
वापस लौट आए कैसे ,
जरा भी लज़ाए नहीं ।
बार-बार ख़ून चूसा ,
फिर भी लाई है मञ्जूषा ।
सोचिए तो फिर से इनमें ,
क्यूं सेवा का भाव आया ।
चुनाव आया ……………………..।
हमको ये बताना होगा ,
पोलिंग बूथ जाना होगा ।
न कोई कहानी होगी ,
न कोई बहाना होगा ।
अबकी बार कहे ‘मुदगल’ ,
सत्य को जिताना होगा ।
एक बार मौका फिर ,
आपका ज़नाब आया ।
चुनाव आया ………………………।
लोकेन्द्र मुदगल